कॉलेजच्या सुरूवातीच्या दिवसातल आणि आताही माझ्या आवडत्या गाण्या पैकी एक ! आत्ताच ऐकत ऐकत लिहून काढल आहे.. जमल तर नक्की ऐका .. रात्री च्या वेळेस मस्त वाटतं .. :)
बादलो की गहराई मे सोचे क्या हुजूर ..
उंचे उंचे परबत है जमीं से कितने दूर ..
आंहे भरती है ये ठंडी हवा ..
ऐसे रंगी राहो मे अब हमको क्या हुआ..
चांद से तारोंका है आपस का फ़ासला
बीच मे ये गहना दुनिया ..
इस दुनिया को कहते मजबूर
मिटा दिया खुद हस्ती को ये है किसका कसूर ?
..
तमन्ना है यही .. ऐसे यूं अभी
हम बसाये कोई... नया जहा..
आशना हो ये दिल.. प्यार के काबील
साज ऐसी भी हो .. सुने जहां
मुसाफिर को मिले रासता, जमाने को मिले वासता
कैसे कैसे परवानो कि बाते मशहूर
जैसे ये नजराने वैसे ही ये सुरूर
है यकीन दिल मे सुबह आयेगी जरूर
मिटेगा ये अंधेरा होगा हरेक शहने नूर..
..
प्यार करते इधर, प्यार बनते इधर
दास्तां ए सिफ़र... सुनो यहां
ये भी होंगे खफ़ा .. क्या पता क्या गिला ?
हर कदम पे मिले कोई नया..
मुसाफिर को मिले रासता, जमाने को मिले वासता
--
अल्बम : सिफ़र
गायक : लकी अली..
बादलो की गहराई मे सोचे क्या हुजूर ..
उंचे उंचे परबत है जमीं से कितने दूर ..
आंहे भरती है ये ठंडी हवा ..
ऐसे रंगी राहो मे अब हमको क्या हुआ..
चांद से तारोंका है आपस का फ़ासला
बीच मे ये गहना दुनिया ..
इस दुनिया को कहते मजबूर
मिटा दिया खुद हस्ती को ये है किसका कसूर ?
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तमन्ना है यही .. ऐसे यूं अभी
हम बसाये कोई... नया जहा..
आशना हो ये दिल.. प्यार के काबील
साज ऐसी भी हो .. सुने जहां
मुसाफिर को मिले रासता, जमाने को मिले वासता
कैसे कैसे परवानो कि बाते मशहूर
जैसे ये नजराने वैसे ही ये सुरूर
है यकीन दिल मे सुबह आयेगी जरूर
मिटेगा ये अंधेरा होगा हरेक शहने नूर..
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प्यार करते इधर, प्यार बनते इधर
दास्तां ए सिफ़र... सुनो यहां
ये भी होंगे खफ़ा .. क्या पता क्या गिला ?
हर कदम पे मिले कोई नया..
मुसाफिर को मिले रासता, जमाने को मिले वासता
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अल्बम : सिफ़र
गायक : लकी अली..
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